मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

वक़्त ज़रा रुक जा ना तुझे इतनी भी क्या जल्दी है
थोड़ी थोड़ी बचपन कि यादें समेट लेने दे
वो आंगन में घर घर खेलना लुका छिपी का खेल में खो  जाने दे
मा के हाथ के बने खाने का  स्वाद फिर से चख लेने दे
पापा की गाड़ी के पीछे बैठकर घूम लेने दे
वक़्त ज़रा रुक जा ना तुझे इतनी भी क्या जल्दी है


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क़ीमत

क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी