शनिवार, 29 दिसंबर 2018

ये क्या हुआ मुझे , उड़ने लगी मै तो आसमानों में

कल तक थी धीमी नदिया जैसी
आज हूं हवा से बातें करती हुई
कल तक थी सूखी मिट्टी की गुड़िया
आज हूं उपवन  सी हरी भरी
किसने किया ये जादू, ये कमाल कर दिया
ज़मीं पर थे  पांव , आसमां में बिठा दिया ।

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क़ीमत

क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी