Kavita
जुता चप्पल झाड़ु एक समान
पड़ता जब माँ के हाथ
कोई ना बच पाए निशाने से इसके यार 👹
क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी
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