चलते चलते ज़िन्दगी के सफर में हाथों की गिरफ्त उनकी ढीली पड़ने लगी
बदलने है रास्ते शायद उनको इसीलिए शायद बात हमारी सारी कड़वी लगने लगी
बदलने है रास्ते शायद उनको इसीलिए शायद बात हमारी सारी कड़वी लगने लगी
क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी
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