नदियों सी बहती चली अब तो रुकने की तमन्ना है हा है
मद्धम मद्धम हवा सी चलती रही अब तो रुकने का अंदेशा हां है
Ahan
रुके तु क्यो रुके ,जाना है हमे
महकी सी, फूलों सी मे,बदन में महकी जाए
सोंधी सी ,हल्की सी, फुहारों सी बरसती जाए।
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