सोमवार, 27 मई 2019

भीगी सी भागी सी मेरे बाजुओं में समाए

 नदियों सी बहती चली अब तो रुकने की तमन्ना है हा है
मद्धम मद्धम हवा सी चलती रही अब तो रुकने का अंदेशा हां है 
Ahan
 रुके तु क्यो  रुके ,जाना है हमे 
महकी सी, फूलों सी मे,बदन में महकी जाए
सोंधी सी ,हल्की सी, फुहारों सी बरसती जाए।




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क़ीमत

क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी