सोमवार, 3 जून 2019

खोया खोया है चांद फलक पर
पता नहीं कहा गया रे
हुस्न देखकर शायद फिरता होगा बनके आवारा
कौन है ये धरती पे मुजसमा जिसके आगे फीका है नूर हमारा


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क़ीमत

क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी