कीमत ना समझी असुओ की हमारी खुद ही हमने, हसी के लिए निकले जन सैलाब में
दाम भी किसी ने ठीक ना लगाया हर वक़्त खुद को बेबसी का ज़िम्मेदार बताया
दाम भी किसी ने ठीक ना लगाया हर वक़्त खुद को बेबसी का ज़िम्मेदार बताया
क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी
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