मंगलवार, 31 मई 2022

रेत

रेत की तो  प्रकर्ती ही है फिसल ज़ाने की बेवजह हम हाथों को कसूर देते है

सोमवार, 16 मई 2022

नाराज़गी

 नाराज़गी की हद देख़िए मेरे यार की 

अब तो ख़्वबो में आने को  भी मना कर दिया ।

तेरी गलिया

 बहुत खूबसूरत है वो गलिया क़सम से 

जिस पर से तेरे कदम जाते है 

शुक्र है खुदा का जो ये मुझे तेरे घर का पता बताते है

क़ीमत

क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी