मंगलवार, 31 मई 2022

रेत

रेत की तो  प्रकर्ती ही है फिसल ज़ाने की बेवजह हम हाथों को कसूर देते है

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क़ीमत

क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी