बचपन में घर घर खेलते खेलते पता ही नहीं चला मैं कब मैं बड़ी हो गई और यह साथ में खिलौने वाले बर्तन भी बड़े हो गए हैं जिम्मेदारी में भी बड़ी हो गई है पहले हम छोटे थे खेल खिलौने छोटे थे आकांक्षाएं छोटी थी पैसों की चाहत छोटी थी सब कुछ बढ़ गया है जरूरतें बढ़ गई हैं और शान बढ़ गई हैं अहंकार बढ़ गया है शरीर बढ़ गया है बुद्धि बढ़ गई है बस एक ही चीज घट गई है मासूमियत
मासूमियत ने तजुर्बा तो दे दिया लेकिन मासूमियत छीन ली
लेकिन शायद यह वक्त की जरूरत भी है जैसे कि मासूमियत बचपन में ही सही है आज के समय में जो मासूम है बोला है उसकी कोई इज्जत नहीं है उसे कोई भी बेवकूफ बना सकता है जीवन में अगर जीना है तो चाणक बनकर ही जीना पड़ता है बच्चा जब धीरे-धीरे बड़ा होता है तब उसने चालाकियां आने लगते हैं और मासूमियत खोने लगती है जिंदगी को जैसे जरूरत होती है वह अपने हिसाब से चलती है जो कुछ भी होता है सब अच्छा ही होता है इसलिए just go with the flow of life
इसका यह कतई मतलब नहीं है कि आप फ्लो ऑफ लाइफ में कुछ ऐसा कर जाओ जो कि अनैतिक हो नहीं ऐसा नहीं आप अपने जज बनो चीजों को देखो क्या सही है और क्या गलत कहां मासूमियत ठीक रहेगी कहां चालाकी से काम चलेगा
अपने घर परिवार में मासूम बन कर रहो क्योंकि सबके दिल आपके पति अच्छे ही होंगे लेकिन बाहर निकल के उस मासूम दिल को एक कोने में रख कर बाहर निकलो।
नहीं तो दुनिया वह चांटा मारेगी जिससे लालपन वर्षों तक कायम रहेगा इसलिए मासूमियत और चालाकी दोनों ही जरूरी है इन दोनों का उचित मात्रा में अनुपात अपने हृदय में रखो और सही समय आने पर इनका उपयोग करो।
अगर आप घर परिवार में चालाकी यानी दिमाग से काम लेंगे दिल से नहीं तो परिवार बिखर जाएगा क्योंकि वहां चालाकी की जरूरत है ही नहीं और बाहर वालों हो मासूमी दिखाओगे तो वह तुम्हें लूट कर रख लेंगे।