Kavita
कांच का ग्लास थोड़े हूं साहब जो टूट जाऊंगी, मै तो हूं वो फौलादी चट्टान अगर हाथ भी लगाओगे तो मूरत बन जाऊंगी
क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी
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