गुरुवार, 16 जून 2022

बारिश की बूँद

बारीश की पहली बूँद सी तुम ,क़ाली मिट्टी सा मैं
मिलते ही समाँ महकने लगता है 

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क़ीमत

क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी