सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

गुलाब

मुंह धुलकर  आती है बालकनी में तो पानी के बूंदे उसके चहरे पे यू लगती है मानो गुलाब पर ओस की बूंद पड़ी हो 
वो गुलाब और  मै माली पसंद तो बहुत है पर तोड़ नहीं सकता 

आशिक़ हो मै उसका ,दिल तोड़ सकता हूं अपना पर उसको छोड़ नहीं सकता 




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क़ीमत

क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी