शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

Poem on Pulwama attack for martayers

होली के रंगों से रंगे थे जिनके हाथ आज खून से लथपथ पड़े हैं तिरंगे के साथ
जिन की मांगों में थी सिंदूर की लाली, सूनी पड़ी है कब से यह मांग बेचारी



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क़ीमत

क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी