Kavita
बेहतर नहीं बेहतरीन लिखूँ
चलो आज़अपने देश के कुछ नाम लिखूँ
ख़ुशियों क़ा क्या दाम …..
ज़िन्दगी
तिरंगा है मेरी जान
आन बान शान
इस पर मर मिटे ना जाने कितने जवान
मौत किसी को भी नहीं बख़्शती इंसान चाहे राजा हो या रंक
ख़ामोशी मे भी आवाज़ होती है जो दिल को सुनाई देती हैं,
अल्फ़ाज़ हो ना हो बात हो ही जाती है
कुछ चटक सा गया है दिल मे समझ नहीं अता
क्या खोया है समझ नहीं आता
ज़िंदगी जिए जा रहे हैं यूँ ही
कहाँ जाएँगे कुछ समझ नहीं आता
क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी