शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2019

मिलना और बिछड़ना

मन करता है कभी बादलों में छुप जाऊ तो कभी मन करता है बूंदों सा धरती पर बरस जाऊं
चूम लूंगा जब धरती को तो महक जाएगा  ये समा
 मिलन भी है जुदाई भी, बदलो से बिछड़ना ..धरती से मिलन
सही कहते है लोग कभी कभी बिछड़न से ही मिलन होता है।

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क़ीमत

क़ीमत भी अदा करनी पड़ी हमे उस रिश्ते की जिसकी कोई क़ीमत न थी